Last modified on 23 मई 2018, at 12:31

यह शैतानी / यतींद्रनाथ राही

अभी समय है
बात समझ लो
बहुत हो गयी
यह नादानी

दीपक ऐसे नहीं
बुझा दें हमें
आँधियाँ फूंक मार कर
हम चलते हैं तो पर्वत भी
पंथ हमें देते
बुहार कर
जिसने
तुम्हें सिखाया चलना
रार उसी से
तुमने ठानी?
शिलाखण्ड हैं
बुनियादों के
धरते स्वर्ण-शिखर कन्धों पर
प्राणों को कर दिया समर्पित
संकल्पों के
अनुबंधों पर
हमने आँख तरेरी
तो फिर
कहाँ रहेगी
यह शैतानी?

बहुत पचाया ज़हर
कन्ठ में
अब मत छेड़ो
नेत्र प्रलय का
महाक्रूर ताण्डव होता है
महा शक्ति के महा उदय का
समय बुरा है
महानाश की
कर मत लेना
तुम अगवानी!
24.7.2017