यह सिलसिला है
जो कहीं टूटता नहीं!
आदिम अंधेरे के गर्त से निकाल
डायनासोर की अस्थियों में
माँस-मज्जा-रक्त से सज्जित कर
प्राण फूँका जा रहा है
खूँखार ड्रैगन को मानवीय व्यवस्था में
प्रतिष्ठापित करने का प्रयास जारी है
शुद्ध-रक्त का उन्माद डभक रहा है
कोशिश है और कोशिश जारी है
एक आदिम सिलसिला है जो कभी टूटता नहीं
हिंसा की अग्नि प्रज्वलित है
नरमेध-यज्ञ का विराट आयोजन!
और उसका तर्क
ज़ोरदार शब्दों में
संसद में दिय जा रहा है
पाश्विकता और धर्मान्धता का एक नाम
उग्र राष्ट्रीयता है
धुंध है हवा में
और बारूदी गंध
सन्नाटा भरे वातावरण में
सिर्फ़ एक
हिटलर का प्रेत
अट्टाहस कर रहा है
धन का मायालोक
हमें अपने कमरे की
सुगंधित, सम्मोहित दुनिया से
बाहर नहीं जाने देता
और बाहर जो भी है
वीभत्स होता जा रहा है
(रचनाकाल : 1993)