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यह हंसा भी / अष्‍टभुजा शुक्‍ल

"घोड़ों की तरह

हरदम

मुँह लटकाए नहीं रहना चाहिए

मुँह है तो

बोलने के लिए

और हँसने के लिए"


गोबर पाथती हंसा

जब-तब

ऎसे ही सुभाषित कहती है

पता नहीं

यह हंसा भी

किस लोक में रहती है?