Last modified on 14 अप्रैल 2010, at 11:10

यह हृदय की पीर / विनोद तिवारी

यह हृदय की पीर
है नयन में‍ नीर

तोड़ डालो आज
दंभ की प्राचीर

कुछ न मेरा,सब
आपकी जागीर

क्या कहें कितना
नीर, कितना क्षीर

कहो रोया कौन
बैठ नदिया तीर

प्रेम का ही तो
रोग है गंभीर