पुरवा !
जब मेरे देश जाना
मेरी चंदन माटी की गंध
अपनी साँसों में भर लेना,
नाप लेना मेरे पोखर मेरे तालाब की थाह
कहीं वे सूखे तो नहीं,
झाँक लेना मेरी मैना की कोटर में
उसके अण्डे फूटे तो नहीं,
लेकिन पुरवा
जब चंपा की बखरी में जाना
उसकी पलकों को धीरे से सहलाना
देखना, उसके सपने रूठे तो नहीं,
मेरी अमराईयों में गूँजती कोयल की कूक
कनेर के पीले फूल
सबको साक्षी बनाना
पूछना, धरती-आकाश के रिश्ते
कहीं टूटे तो नहीं,
क्या, मेरी सोनजुही
मुझे अब भी याद करती है
उसके वादे, झूठे तो नहीं ।