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यात्रा / केशव

कितनी दूर है रोशनी का स्तम्भ
कुछ अँदाजा नहीं
मेरे पास आँखों के सिवा
कोई दरवाज़ा नहीं
बस मुझे चलना है
बिना मील-पत्थर देखे
रास्ते पर चिन्हित पद चिह्न गवाह हैं
कि मैं चला हूँ
कि यात्रा ने मुझे अभी
नहीं किया है भयभीत
पाँवों ने नहीं चखा है
लहू का स्वाद
रोशनी का स्तम्भ
न सही मेरी मँजिल
पर हो सकता है दिशा
जिसके सहारे चलकर
ज़ेहन में उतार सकता हूँ
रास्तों के नक्शे
और पढ़ सकता हूँ
स्तूपों पर खुदी भाषा
और यात्रा का व्याकरण
इतना क्या कम है
कि दूरियों से कर सकता हूँ प्रश्न
रास्तों से बातें.