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यात्रा आ यात्रा / महाप्रकाश

कतोक बेर हमरा नाँघ’ पड़ैत अछि
बालुक अनन्त समुद्र, अथाह नदीक वेग
विस्मृत कोनो गाम अकस्मात स्मरण
भ’ अबैत अछि। कोनो दर्द आ
ऊँच महार पर एकटा बूढ़ सेमरक गाछ
गाछ पर बैसल एक जोड़ा चिड़ै।
उगैत सूर्य। ऊपर नील आकास।
नीचा गाम। पाँखि फोलैत फूल आ
-गंध प्रवाह नदी।

मोन हमर असहाय-चिड़ैक बच्चा
आँखि बन्न, कोन किरण फोलि देलक
आँखि ? अकस्मात, हम हर्षोत्फुल
किएक भ’ गेलहुँ ? पड़ाइत रहि गेलहुँ
लगातार। दिशा सभकें धांगैत। हँसैत
अन्ततः नील घाटीेमें हेरा गेलहुँ
हेरा गेल अर्जित शब्द। देलक नहि संग
कोनो संगीत। मृत शब्द एकटा पैघ
जुलूस हमर चेहराक चतुर्दिक
नील दरारि पड़ि गेल। पड़िए गेल।
दिग्भ्रमित हम पुनः आबि गेल छी।
तट पर मनु। किन्तु, आब हम चिकरब नहि
लेब नहि कोनो नाम। शब्द कोनो बाजब नहि
अर्थ हमरहिमे अंकुराएत। लोकक
कहने की आब ऋतु बौराएत ?