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यादें / कल्पना लालजी


ऐ मेरे गाँव की गलियों ,मेरे बागों की कलियों
भूल न् जाना तुम मुझको ,याद मुझे करते रहना
मैं फिर आऊंगी मिलने तुमसे ,मैं फिर आऊंगी मिलने

बछ्पन की यादें मानो मुझसे ,आज भी हैं बातें करती
माटी की सौंधी भीनी खुशबू ,आज भी भी है मन को हरती
आज भी नैनो से मेरी गंगा जमना बहती है
इंतज़ार में पलकें मेरी दरवाज़े पर रहतीं हैं
याद मुझे करते रहना
मैं फिर आऊंगी मिलने तुमसे ,मैं फिर आऊंगी मिलने
  
कैसे उन छोटी बातों पर ,हम आपस में लड़ते थे
साँझ –सवेरे खेल –खेल में ,बिना बात झगड़ते थे
ख़ामोशी का पहरा आज ,हरदम छाया रहता है
लिखना आँगन के आमों पर ,क्या अब भी बौर महकता है
याद मुझे करते रहना
मैं फिर आऊंगी मिलने तुमसे ,मैं फिर आऊंगी मिलने


नाता तुमसे जन्मों का ,माँगू मैं फैलाकर झोली
बाँहों में मैं जिनके झूली ,बाबुल की वह लोरी न् भूली
बरसातों में बादल क्या पहले सा गरजता है
कहना क्या अब भी छत पर सावन वाही बरसता है
याद मुझे करते रहना
मैं फिर आऊंगी मिलने तुमसे मैं फिर आऊंगी मिलने

डोर वही अब भी रिश्तों की बीच हमारे है रहती
आँख मिचोली वाली शामे हमसे तुमसे हर पल कहती
आकर ढूँढो आज हमें हम सात समुन्दर पार बसे
बोलो क्या अब भी बातों में बछ्पन वही झलकता है
याद मुझे करते रहना
मैं फिर आऊंगी मिलने तुमसे मैं फिर आऊंगी मिलने

कैसे मन को समझाऊँ कैसे विश्वास दिलाऊं
जी चाहे पंछी के जैसे उड़ कर पार चली आऊं
बंधन अब भी साँसों को हर पल बांधे रखता है
कहना क्या अब भी मेरे बिन जीवन सूना लगता है
याद मुझे करते रहना
मैं फिर आऊंगी मिलने तुमसे मैं फिर आऊंगी मिलने