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यादें / पवन चौहान

गेसुओं का घना साया
वो अंबुआ की ठंडी छाया
वो मद भरी बातें
और वो मुलाकातें
कहाँ खो गईं हैं...
वो निगाहों का शरमा कर झुकना
मेरी आवाज सुन तेरे कदमों का रुकना
वो लबों की थरथराहट
मेरे आने की सुनना आहट
कहाँ खो गई है...
वो षरमाए चेहरे का गुलाबी रंग
तेरे बात करने का ढंग
वो मुझे भीड़ में तलाशती आंखें
खूश्बू भरी साँसें
कहाँ खो गईं हैं...
वो खुशी से मेरा चेहरा चूम लेना
मस्ती में थोड़ा झूम लेना
वो रातों के ख्बाव मुझे सुनाना
मिलने के बहाने बनाना
कहाँ खो गए हैं...
वो प्यार भरे खत चूम लेना
मुझे देख, सहेलियों के बीच झूम लेना
वो बचाकर सबसे नजर मुझसे मिलाना
और षरमा कर हाथों में चेहरा छिपाना
कहाँ खो गया है...
जिंदगी में सिर्फ रह गए हैं अब
वो बेबुनियाद वादे
सूनेपन को निहार
याद करना तेरी यादें
न जाने कहाँ खो गईं हैं
न जाने कहाँ खो गईं हैं...।