यादें चलकर नहीं आती
उन्हें बुलाना होता है
वो कहीं बाहर से नहीं आती
वो भीतर ही होती हैं
वह भीतर, जो प्रेम का अंतःपुर है
कितने भाग्यवान हैं
वो लोग जो इस पुर में रहते हैं
वो जो इस पुरी में भगवान होते हैं
वेदना इस मंदिर
का तोरण द्वार होता है
जिससे गुजर कर आत्मा का
शोधन और स्वयं का
व्युत्क्रमहीन संशोधन होता है
कितने भोले होते हैं
वो लोग जो कहते हैं
अब सब ख़त्म
भला प्रेम में ख़त्म होने जैसा
क्या होता है
प्रेम तो आरम्भ ही
स्वयं को ख़त्म कर होता है