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यादों का समुद्र / मदन गोपाल लढा

सचमुच
बहुत अच्छा लगता था
दोस्तों के साथ
तुमसे नेह का
बखान करते
सारी-सारी रात।

यह जुदा है
कि आज
मुँह पर लाना भी
पाप समझता हूं
वे कथाएँ।

मगर मेरा मन
अब तक नहीं भूला है
उन यादों के समुद्र में
गोता खाने का सुख।


मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा