मेरे हृदय के आकाश में
भावनाओं के घुमड़ते बादल
जब
शब्दों के जंगल और
यादों की गलियों से गुज़रकर
भर रहे थे अपने अंदर
तुम्हारे स्नेह के सागर से
प्रेरक शब्दों की बूंद
तब तुम्हे
शायद पता भी नहीं था
कि उससे सिंचित होते रहती थी
मेरी लेखनी की मरूभूमि
खिल उठते थे उनमें
अभिव्यक्ति के पुष्प
गुनगुनाने लगते थे भावों के भौंरे
और बहने लगती थी
विचारों की ठंडी पुरवाई
पर तुम्हारे
अहम के पर्वत से टकराकर
बिखर गए हैं
मेरे विश्वास के बादल
सहम सी गयी हैं
ख्वाहिशों की बूंदे
अब तो
बदलते मौसम का एहसास लिए
तुम्हारी याद की प्रखर धूप है
जो मेरी संवेदना को झुलसाती है...!!