कभी-कभी
एकांत का
तकिया बनाती हूँ ।
यादों की
रजाई ओढ़
लोरी गुनगुनाती हूँ ।
ढूंढती हूँ
गुज़रे लम्हे
भूला गीत गाती हूँ ।
सोचती हूँ
जब तुम्हें
जाने क्या छिपाती हूँ ।
जब आँखें
रोटी हैं
बरबस मुस्कुराती हूँ ।
कंगारूओं के
देश में
खुद को समझाती हूँ ।