कभी कभी बहुत याद आती है
इतनी ज़्यादा याद आती है
कि मन करता है कि आँख में
खंज़र कुरेद-कुरेद कर
इस कदर रोऊँ की
यह पूरी दुनिया
बाढ़ की नदी में आए झोंपड़े की तरह
बह जाए
लेकिन
फिर चौकड़ी मारकर बैठता हूँ
और पलटता हूँ पुरानी डायरियाँ
आख़िरकार हर "न"
से परेशान हो उठता हूँ
सोचते-सोचते सर के
टुकड़े-टुकड़े होने लगते हैं
लेकिन ज़रा-सा भी याद नहीं आता
कि आख़िर वह क्या है
जिसकी कभी-कभी
बड़ी बेतरह याद आती है....