हर कोशिश-ऐ-ज़ुल्मत यूँ बेअसर हो गई
के कहीं किसी शय को जैसे खबर हो गई
ज़ीस्त ने फिर दस्तक दी अजल-गिरफ़्ता को
और एक याद की अंगड़ाई से सहर हो गई
हर कोशिश-ऐ-ज़ुल्मत यूँ बेअसर हो गई
के कहीं किसी शय को जैसे खबर हो गई
ज़ीस्त ने फिर दस्तक दी अजल-गिरफ़्ता को
और एक याद की अंगड़ाई से सहर हो गई