निठुर होकर ड़ालेगा पीस
इसे अब सूनेपन का भार,
गला देगा पलकों में मूँद
इसे इन प्राणों का उद्गार;
खींच लेगा असीम के पार
इसे छलिया सपनों का हास,
बिखरते उच्छवासों के साथ
इसे बिखरा देगा नैराश्य।
सुनहरी आशाओं का छोर
बुलायेगा इसको अज्ञात,
किसी विस्मॄत वीणा का राग
बना देगा इसको उद्भ्रान्त।
छिपेगी प्राणों में बन प्यास
घुलेगी आँखों में हो राग,
कहाँ फिर ले जाऊँ हे देव!
तुम्हारे उपहारों की याद?