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याद तुम्हारी / संजय पंकज

जब जब आई याद तुम्हारी
मन मेरा नैनीताल हुआ!

काशी जैसी काया लेकर
वृन्दावन की माया लेकर
तीरथ तीरथ भटक रहा हूँ
पीठ पीठ की छाया लेकर

तृष्णा तृष्णा जीवन जीता
कृष्णा-सा मैं बेहाल हुआ!

खजुराहो की कविता-सी तुम
मेवाड़ी प्रिय वनिता-सी तुम
कश्मीरी तुम हवा सलोनी
केरल की मृदु लतिका-सी तुम

क्षेत्र क्षेत्र की रंग गंध तुम
छंद छंद मैं चौपाल हुआ!

याद तुम्हारी ऊटी-शिमला
गंगोत्री की गंगा विमला
डुबकी डुबकी जब उतराया
उतर गई अंतर में कमला

दिल्ली लोट गई चरणों में
मुंबई—सा मालामाल हुआ!