चिन्ह शुभ अंकित हो घर पे, द्वार वन्दनवार हो!
पुष्प रोली और अक्षत से रचा व्यवहार हो!
हाँथ पर मेंहदी रचे जब मांग में सिन्दूर हो!
हो नई दुनिया बसाने का सगुन दस्तूर हो!
मन्त्रपूरित स्वर अधर पर प्रीति मंगल गान हो!
पावनी वेदी पर बैठे वर को कन्यादान हो!
हाँथ में जब हाँथ लेकर तुम वचन भरना प्रिये!
सात फेरों के लिये जब पग प्रथम धरना प्रिये!
है क़सम तुमको मुझे तब याद मत करना प्रिये!
पालकी में बैठ कर जब तुम विदा होना सुनो!
खोल देना गांठ हर एक कुछ नहीं ढोना सुनो!
देवता के हेतु समिधा जिस तरह दहके जले!
तुम पिघलना सेज पर जब रीत का कंगन खुले!
दिन तुम्हारे फागुनी हों रात हर दीपावली!
मन मेरा मानस बने वह ज्ञान दो रत्नावली!
ऋतु बसन्ती हो या पतझर तुम नहीं डरना प्रिये!
दे दिये हैं जो वचन तो अब नहीं फिरना प्रिये!
है क़सम तुमको मुझे तब याद मत करना प्रिये!
बांसुरी यादों भरी चुपके से जब गाने लगें!
चित्र मेरा हो नयन में हिचकियाँ आने लगें!
भूल जाना तब कहानी इस तरह इस प्यार की!
जिस तरह मेला भुला दे याद अपने द्वार की!
सच यही है स्वर्ण मृग की चाह माया जाल हैं!
चातकों की प्यास पीकर प्यार मालामाल है!
उस ह्रदय में रंग सिंदूरी जब कभी भरना प्रिये!
अंक में जब काम के रति रूप-सा झरना प्रिये!
है क़सम तुमको मुझे तब याद मत करना प्रिये!