उम्र एक छलावा भर है शायद।
तुम उस समय लिख रहे थे जब
मेरे घर में पहला कवि पैदा हुआ।
मैं शायद आखिरी हूँ जिसका कविता से कुछ वास्ता है।
कविता जो कि शायद
हर रोज़ बस सर धुनना और सर पटकना है
जेल की दीवारों से।
कविता जो कि शायद बस तारीखों से खेलना भर है।
तुम जिन चीज़ों के बारे में लिख रहे थे
तुमसे पहले भी उन्ही चीज़ों के बारे में लिखा गया
और तुम्हारे बाद भी हमलोग उन्हीं चीज़ों के बारे में झक मार रहे हैं।
मसलन-औरतें, सिगरेट, लोग और सब तिलिस्म।
तुम्हारे सोच लेने भर से एक सपना पैदा हुआ
जो मुट्ठी भर होते हुए भी जाने कितनी एड़ियाँ ले डूबा।
अपनी मौत के बीसियों साल के बाद शायद तुम
आसमान में उस गाते हुए पुल पर खड़े हो जो धरती और चाँद को जोड़ने के लिए
तुमने बनाया था।
उस पुल पर खड़े तुम थके हुए तो होगे पर खुश होगे कि
दुनिया के सबसे पुराने प्रासादों के नीचे से पहाड़ काट कर फेंक दिए गए हैं।