उड़ने दो
मन को
जुड़ने दो
फिर कोई कड़ी
कि चले कहाँ
छोड़कर
इस घड़ी
उड़ते-उड़ते ही देखेगा
फैले इस वन को
लायेगा गन्ध
सूरज से, वन से
घाटियों से खींच
थककर फिर उतर आयेगा
किसी डाल पर
प्रतीक्शा में
राह कोई
होगी खड़ी
चलेगा फिर झूमता
गाता हुआ
यायावर कोई गीत
पहुंचेगा जब द्वार पर
कहेगा झट से कोई
आ गये
देर तो कर दी बड़ी.