Last modified on 10 जून 2014, at 22:10

यास / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बरबते-दिल के तार टूट गये
हैं ज़मीं-बोस राहतों के महल
मिट गये किस्साहा-ए-फ़िक्रो अमल
बज़मे-हसती के जाम फूट गये
छिन गया कैफ़े-कौसरो-तसनीम

ज़हमते-गिरीया-ओ-बुका बे-सूद
शिकवा-ए-बख़ते-नारसा बे-सूद
हो चुका ख़त्म रहमतों का नुजूल
बन्द है मुद्दतों से बाबे-कुबूल
बे-नियाज़े-दुआ है रब्बे-करीम

बुझ गई शमए-आरज़ू-ए-जमील
याद बाकी है बेकसी की दलील
इंतज़ारे-फ़ज़ूल रहने दे
राज़े-उल्फ़त निबाहने वाले
काविशे-बे-हुसूल रहने दे