या बहारों का ही ये मौसम नहीं
या महक में ही गुलों के दम नहीं।
स्वप्न आँखों में सजाया था कभी
आंसुओं से भी हुआ वह नम नहीं।
हम बहारों के न थे आदी कभी
इसलिये बरबादियों का ग़म नहीं।
आशियाना दिल का है उजड़ा हुआ
जिंदगी के साज़ पर सरगम नहीं।
जश्न खुशियों का भी अब बेकार है
ग़म का भी कोई रहा जब ग़म नहीं।
मौत का क्यों ख़ौफ़ ‘देवी’ दिल में हो
जीने से बेहतर कोई मौसम नहीं।