दूषित पाश्चात्य सभ्यता का, जब था सब ओर प्रसार हुआ।
मानवता की मृदु काया पर, दानवता का अधिकार हुआ॥
शोषण, उत्पीड़न से आकुल, जन-जीवन भी जब भार हुआ।
युगदेव! तुम्हारा भारत में, था तभी दिव्य अवतार हुआ॥
तुमने आकर जगतीतल में, जग को नूतन सन्देश दिया।
मानवता के द्रोही-जन को, शुचि सत्य सुखद उपदेश दिया॥
पावन स्वतन्त्रता के पथ पर, तुम बढ़े लिये उर में उमंग।
थे अगम अलौकिक कार्य सभी रह गया देख यह विश्व दंग॥
तुम सत्य-अहिंसा के पालक, थे वीर व्रती अनुपम अनन्य।
पाकर तुमसा सुत महामहिम भारत माँ भी हो गई धन्य॥
ठुकरा कर ठाट सभी तन में, बाँधी केवल कोपीन एक।
अगणित कष्टों को सह कर भी, छोड़ी न कभी वर विमल टेक॥
तुमने सत्याग्रह के बल से, दुःशासन का मद किया चूर।
स्वातंत्र्य-सूर्य को प्रकटा कर, दासत्व-तिमिर कर दिया दूर॥
तुमने अपना कर दीनों को, था दीनबन्धु सम प्यार किया।
अगुआ बन, दलित अछूतों को, निज कंठ लगा उद्धार किया॥
कर गये समुन्नत गौरव से तुम मातृभूमि का भव्य भाल।
जन-जन जगती का गायेगा, युग-युग तक तेरा यश विशाल॥