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युगों के बाद फिर / महेन्द्र भटनागर

युगों के बाद
सहसा आज तुम !
स्वप्न की नगरी बसाये
हाथ सिरहाने रखे सोयी हुई हो
बर्थ पर !
क्या न जागोगी ?
हुआ ही चाहता पूरा सफ़र....!

आँख खोलो
आँख खोलो
शब्द चाहे
एक भी मुझसे न बोलो !
देख,
फिर चाहे
बहाना नींद का भर लो !

युगों के बाद फिर
पा रंग नव रस
खिल उठेगा
धूप मुरझाया कुसुम !
कितने दिनों के बाद
सहसा आज तुम !