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युग-निर्माता / महेन्द्र भटनागर


झंझा में झूले वह जिसको निज पथ की पहचान
आग जलाकर चले वही जिसके चेहरे पर मुसकान !

जगमग उसके नेत्र कि जिसमें जीवन तीव्र प्रकाश,
धड़कन उसके उर में, जिसमें भावी की है आश,

सुप्त पड़ा निर्जीव वही जिसका तन ठंडी लाश
गंभीर हिमालय-सा वह; है जिसका शीश महान !

ज्वाला जिसके अंग-अंग में, दे प्राणद संदेश,
युग-निर्माता वह जिससे दूर नहीं हो जीवन-क्लेश !

सैनिक वह ही केवल जिसका सुदृढ़ अहिंसक वेष,
युग-संचालक, मुखरित हो, जब छाया हो सुनसान !

तलवार वही साधक जिससे कँपता हो संसार,
ढह कर गिर जाए झट, सरके वह आधार !

तूफ़ानी सागर में खे ले नौका — वह पतवार,
ऐसा हो जग की जनता के नेता का अभिमान !