Last modified on 23 अक्टूबर 2017, at 01:49

युग बीते रे भैया / ब्रजमोहन

युग बीते रे भैया ...
दुक्खों में डूबी है जीवन की नैया ...

ये टोपी कुरसी ये भाषण के वादे
आँखों में इनकी हैं ख़ूनी इरादे
आदमी से प्यारा जिन्हें लगता रुपैया ...

कितने अन्धेरे जीवन के रस्ते
चीज़ें हैं महँगी और इनसान सस्ते
टूटा पड़ा है देखो वक़्त का पहैया ...

जीवन के सागर में साँपों का वासा
न कोई अपना कन्हैया न आशा
हम ही बनेंगे अब नाग के नथैया ...

जोंकें लहू पी रहीं आदमी का
बदलेगा इनसान रुख़ ज़िन्दगी का
हम ही हैं असली नाव के खिवैया ...