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यूँ ही / सिद्धेश्वर सिंह

तुम्हारी हँसी को मैं
हरसिंगार के फूलों की
अन्तहीन बारिश नहीं कहूँगा
और यह भी नहीं कि
चाँदनी की प्यालियों से उफ़नकर
बहती हुई
मदिर-धार है तुम्हारी हँसी ।
बल्कि यह कि --
टाइपराइटर के खट-खट जैसी
कोई एक आवाज़ है तुम्हारी हँसी
जो मुझे फिलहाल अच्छी लग रही है ।