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यूँ ही नहीं मिलता आरक्षण / कर्मानंद आर्य

अपमान सहना पड़ता है
बेगारी करनी पड़ती है
दंश झेलना पड़ता है
कुल्हाड़ी खानी पड़ती है
क्रोध चबाना पड़ता है
रोना चिल्लाना पड़ता है
लगी जरूरत साहब के आगे पड़ जाना पड़ता है
यूँ ही तो नहीं मिलता आरक्षण
फटी बिवाई में झांको तो रक्त दिखाई देता है
इतिहासों में खाली खाली वक्त दिखाई पड़ता है
भठियारे की भट्ठी में खुद को पिघलाना पड़ता है
चाम चबाना पड़ता है
यूँ ही नहीं मिलता आरक्षण
पटरी, नाले, दक्षिण टोले
गटर-नालियाँ-टट्टी-ढेले
सौउरी, दौरी, बांस, कनस्तर
मुर्दा, लकड़ी, कपड़े, सूअर
गाय चराना पड़ता है, बैल दुहाना पड़ता है
यूँ ही नहीं मिलता आरक्षण