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यूटोपिया / विस्वावा शिम्बोर्स्का / श्रीविलास सिंह

द्वीप, जहाँ सब कुछ हो जाता है स्पष्ट।
जहाँ है ठोस घरातल तुम्हारे पैरों के नीचे।
केवल वही मार्ग जिन पर जाने की अनुमति है।
साक्ष्यों के भार से झुकी हुई होती हैं झाड़ियाँ।
यहाँ उगते हैं उचित परिकल्पनाओं के वृक्ष
और अनंत काल से हैं शाखाएँ जहाँ बिना उलझे।
पारस्परिक समझ का वृक्ष, दमकता हुआ, सीधा और सरल।
उगता है जो 'इसे अब मैं लेता हूँ' नाम के वसंत में।
जितना घना होगा जंगल, उतना ही विशाल होगा परिदृश्य, घाटी का निश्चय ही।
यदि उत्पन्न होता है कोई संदेह, दूर कर देती है हवा उसे तुरंत ही।
आती हैं प्रतिध्वनियाँ अनामंत्रित
और सायास व्याख्या कर जाती हैं दुनिया के रहस्यों की।
दायीं ओर है गुफा जहाँ पड़ा है अर्थ।
बायीं ओर है गहरी प्रतिबद्धता की झील।
सत्य उतराता है सतह पर टूट कर तल से।
अकम्पित आत्मविश्वास खड़ा है घाटी में सिर उठाये।
उसकी चोटी से स्पष्ट हो जाता है दृश्य चीजों के सारतत्व का।
अपने सारे आकर्षण के बावजूद द्वीप है निर्जन,
और धुंधले पदचिन्ह बिखरे हैं इस के समुद्र तटों पर।
जाते हुए समुद्र की ओर, बिना अपवाद।
मानों यहाँ तुम कर सकते हो बस इतना भर कि चलो और कूद पड़ो गहराइयों में, कभी न आने को वापस।
अथाह जीवन में।