ये अजब बात सुनाई भाई।
गरुड़ को पंख हिरावे कागा
लक्ष्मी चरन चुराई॥
ये सूरज को बींब अंधोर,
सोवे चंदर कूं आग जगावे।
राहु के गिहो भोगी कहा रे,
अमृत ले भर जावे॥
कुबेर सोवे धन के आस,
हनुमान जोरु मंगावें।
वैसे सब ही झुटा है,
निंदा की बात सुनावे॥
समीदर तान्हो पीयत कैसो,
साधू मांगत दान।
बहिनी कहे जन निंदक है रे,
बाको सांच न मान॥