(गोधरा काण्ड और उसके बाद के साम्प्रदायिक दंगों पर)
मैं देख रहा हूं
जलता हुआ
भव्य भवन
बचाने की प्रक्रिया से दूर
अपने अपने चूल्हे के लिए
आग ले जाते लोग
परस्पर दोषारोपण करते लोग
कुछ तटस्थ खड़े लोग
कुछ समाजसेवी, सुधारवादी
और बुद्धिजीवी क़िस्म के क्रीम लोग
जिनके लिए
लगातार बढ़ती हुई आग से अधिक महत्वपूर्ण
इस बहस को अंजाम तक पहुंचाना है
कि ये आग कैसे लगी
किसने लगाई ।