ये कैसा देश है
कैसे-कैसे चलन
अन्धों का कजरौटे करते अभिनन्दन ।
तितली के पंखों पर
बने बहीखाते
ख़ुशबू पर भी पहरे
बैठाए जाते
डरा हुआ रवि गया चमगादड़ की शरण ।
लिखे भोजपत्रों पर
झूठे हलफ़नामे
सारे आन्दोलन हैं
केवल हंगामे
कुत्ते भी टुकड़ों का दे रहे प्रलोभन ।
चाटुकारिता से
सार्थक होती रसना
क्षुब्ध चेतना मेरी
उफ़्फ़ गैरिक वसना
ज्वालामुखी बेच रहे कुल्फ़ियाँ सरीहन ।