ये गोकुल चल हो कहत मुरारी।
मेघ तुसार निवारे फनिधर सेवा करे बलिहारी॥
बसुवा अपने कर दीन्हो पालख योंही कीन्हो
जमुना के तट आयके देखें पूरन निरंजन॥
पूरन रूप यो देखे जमुना जानीये सबही भाव
दोही ठौर भई जमुना नीर तब जानत यो हरि भाव॥
जैसा परवत वैसो नीर हवो जानी के हास
पाव लागे जनु बहे जायगे सब दोस॥
जिस चरन को तीरथ शंकर माथा रखीया नीर
वो चरन अब प्राप्त भये हो ये जान उधार॥
बहिनी कहे जिसकू हरि भावे, उसकू काल ही धोके
बसुदेवा कर आप ही मुरीरी काहे कुं संकट आवे॥