ये नन्दगांव ते आये इहां उत आई सुता वह कौनहू ग्वाल की ।
त्यों पदमाकर होत जुराजुरी दौउन फाग करी इहि ख्याल की ।
डीठ चली उनकी इनपै इनकी उनपै चली मूठि उताल की ।
डीठि सी डीठि लगी उनको इनके लगी मूठि सी मूठि गुलाल की ।
पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।