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ये मज़ाक अच्छा हुआ / रामश्याम 'हसीन'

ये मज़ाक अच्छा हुआ
हो गया सोचा हुआ

जो भी था सोचा हुआ
कुछ भी कब वैसा हुआ

ज़िन्दगी की मार का
हर कोई मारा हुआ

लूटने वालो! हूँ मैं
पहले से लूटा हुआ

उनसे माफ़ी माँगकर
मैं नहीं छोटा हुआ