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ये माना अजनबी हो तुम , मगर अच्छी लगी हो तुम / नित्यानन्द तुषार

ये माना अजनबी हो तुम, मगर अच्छी लगी हो तुम
तुम्हीं को सोचता हूँ मैं, मेरी अब जिंदगी हो तुम
ख़ुदा ने सिर्फ़ मेरे वास्ते तुमको बनाया है
मैं इक प्यासा समंदर हूँ और इक मीठी नदी हो तुम