Last modified on 29 दिसम्बर 2010, at 05:02

ये रात कैसी आई / मनविंदर भिम्बर

ये रात कैसी आई
खाली हाथ
न कोई ख़्वाब
न ख़याल

पलकों की झालर पर जो तैरता था
वो चाँद आज ग़ायब है
आरजुओं की पेहरन पर जो तारे थे
वे भी मद्धम हैं
थमा हुआ है नीला आसमान

न जाने
किसके इंतज़ार में