योजना असफल विफल सब युक्तियाँ
ताश के जैसी तिलिस्मी रिक्तियाँ
वक्त बँजारा हुआ दिग्भ्रान्त-सा
सारथी है डिग रहा विश्वास का ।
स्याह बादल को
लिखी हैं चिट्ठियाँ ।
अवाक हैं आँखें बुढ़ाती आस की
उम्र बढ़ती ज्यों अकल्पित प्यास की
शब्द तरकश में नहीं हैं
मौन की ये चिट्ठियाँ
स्वजन सँघाती हुआ सब कुछ हवन
चेतना के आत्मघाती उपकरण
कुश पवित्री
श्लोक हो या सिद्धियाँ
वन पलाशों के लदे यूँ फूल से
बिम्ब सब धुन्धले हुए थे धूल से
उथली नदी की
कोख में ज्यों मछलियाँ
ये अनिष्टों के परिन्दे रक्त प्यासे
उड़ रहे आपात के बादल बनाते
घातकी हैं
सूर्य की भी रश्मियाँ
स्वार्थी मौसम निरँकुश देश का
बेवजह कुचले गए प्रतिरोध का
शुभ नहीं हैं
लाभ की ये तख़्तियाँ