क्या अब भी तुम कविता लिखती हो, ससि रानी
क्या अब भी कोई कहता है तुम्हें 'मसि रानी'
क्या अब भी तुम्हें कोई यह दिल्ली शहर घुमाता है
नाव तुम्हारी खेकर यमुना से नगर की छवि दिखाता है
क्या अब भी तुम्हें कोई जीवन का पाठ पढ़ाता है
कभी प्रसूतिगृह तो कभी शमशानघाट ले जाता है
क्या अब भी तुम वैसी ही हो दुबली-पतली
क्या अब भी तुम्हें हर रोज होती है मतली
मैं तो अब बूढ़ा हो गया साठ बरस का
पर याद मुझे हो तुम वैसी ही, जैसे तितली
कहाँ हो तुम अब, कैसी हो तुम, ओ मिसरानी!
मैं आज भी तुम्हें याद करता हूँ, मसि रानी !
(रचनाकाल : 2001)