रंग भरा मौसम गुलाल-गीत गायें
मुट्ठी भर-भर अबीर हवा में उड़ायें।
स्नेह सने हाथों से पिचकारी साधें,
रँग भीगे रिश्तों को प्राणों से बाँधे;
आओ
इतिहास-वक्ष पर गंध-वृक्ष फिर
नये उगायें।
रोज कहाँ जुड़ती-मन की टूटी कड़ियाँ,
पहन क्यों न लें हम फूलों की हथकड़ियाँ;
यह पलाश-वन
पूरा
आँख से उठायें।