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रंगायन / सुधीर सक्सेना

नीलम अहलावत के लिए

तुम रंगों से रचती हो
रंगायन

तुम्हारे रंगायन में
रंगों का शोर नहीं,
रंगों का आलाप,
रंगों का आक्रमण नहीं,
रंगों का आमन्त्रण,
रंगों का सान्द्र ज्वार नही,
विरल विस्तार
रंगों को भला और क्या चाहिए?
इस भागती कर्कश, कलुष भरी दुनिया में
कम ही दीखता है
रंगों का इतना कोमल संस्कार !