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रंगों की आहट / आशुतोष दुबे

जब रंगों की आहट सुनाई दे,
खोलना होता है दरवाज़ा

जगह देनी पड़ती है
उन्हें खिलने के लिए अपने भीतर

वरना वे गुज़र जाते हैं चुपचाप
बिना कोई दस्तक दिए
और फिर हम उन्हें ढूँढते रहते हैं