रंजोग़म के साथ चिंताएँ सहेजे,
दोस्तों के नाम कुछ ख़त आज भेजे।
साफ हैं दिन की तरह अलफ़ाज मेरे,
पहेली होंगे न एहसासात मेरे,
भैरवी, आसाबरी छेड़ें भले वो-
साथ देंगे तहेदिल से साज़ मेरे।
म्यान से बाहर नहीं तलवार मेरी,
सदा सीमा में रहे हैं ढाल-नेजे़।
बह रही हैं आजकल उल्टी हवाएँ,
अल्पसंख्यक हैं हमारी प्रार्थनाएँ;
किस क़दर मुश्किल हुआ विश्वस्त होना-
धूजतीं बूढ़े दरख्तों की दुआएँ;
हो गया अपराध में ये दर्ज़ कब से
दिखाना आवाम को छलनी कलेजे?
एक के नामे अनेकों के लिए हैं,
अल्पनाएँ औ दिवाली के दिए हैं;
व्यक्तिगत होते हुए ये शब्द मेरे-
दूसरों के वास्ते खुलकर जिए हैं;
महज अपनी ही नहीं ये भूख-प्यासें,
खुली बाँहों से ज़माने को अँगेजे
है सफर में साथ मेरे कुली-रेजे।