रक्खी गई है नींव जहाँ पर मकान की
होती है इब्तिदा भी वहीं से ढलान की
बुनियाद है क़दीम<ref>पुरानी</ref> कहीं बैठ ही जाये
अब और मंज़िलें न बढ़ाओ मकान की
चीज़ें अगर खरी भी नहीं हैं तो क्या हुआ
गाहक को खींचती है सजावत दुकान की
मुंसिफ़<ref>न्यायाधीश</ref> ये चाहता है गवाही तो हो मगर
अंधे की हो किसी या किसी बेज़बान की
शब्दार्थ
<references/>