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रक्शिन्दा ज़ोया से / हबीब जालिब

कह नहीं सकती पर कहती है
मुझसे मेरी नन्ही बच्ची
अब्बू घर चल
अब्बू घर चल
उस की समझ में कुछ नहीं आता
क्यों ज़िन्दाँ में रह जाता हूँ
क्यों नहीं साथ में उसके चलता
कैसे नन्ही समझाऊँ
घर भी तो ज़िन्दाँ की तरह है ।