Last modified on 12 मई 2017, at 14:29

रक्षक / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल

हरा-भरा है
उनका परिसर
फव्वारे तरण ताल
हरे भरे लान
तन हरा
मन हरा
भरा-भरा 'लाकर' भी
हरित प्रेम इतना कि
वे जहां भी जाते हैं
हर लेते हैं वहाँ का हरापन
सुखाड़ में फंस जाते हैं
गाँव के गाँव
खेती बिलट जाती है
जहां-जहां जाते हैं
वे हरियाली के रक्षक हैं
हरियाली की बात करते-करते
बटोर लेते हैं वे
अपनी कई पीढ़ियों के लिए
हरियाली।