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रचती भारत की हृदयमाल / संतलाल करुण

झोपड़ियों से बँगलों तक हर जुबाँ पे रहती है हिन्दी
सब के होंठों पर है फ़बती, सब को जोड़ती है हिन्दी

मणिपुर-अरुणाचल-तमिलनाडु, कश्मीर-उड़ीसा-गोवा
देश के कोने-कोने में, हवा-सी बहती है हिन्दी |

राज-काज में दोयम माना, शर्त थी पन्द्रह वर्षों की
सालों से क्यों टाल-मटोल, कब से पूछती है हिन्दी |

नहीं बढ़ाते बड़ा कदम, कहते परछाई खड़ी है क्यों
अरे चतुर, तेरी फैशनियाँ, ख़ूब समझती है हिन्दी |

तकनीकों का मंद विकास, कमतर आविष्कार यहाँ
जर्मन, रूसी, चीनी-जैसी मान चाहती है हिन्दी |

अंतर्राष्ट्रीयता का छल, वाणिज्य देश में औरों का
अपनी भाषा पे विकास, अपनापन माँगती है हिन्दी

श्रम-भाषा, जन-जन की भाषा, एका-भाव जुटाती
रक्तवाहिनी, अंतर्जाल, प्राणकथा बुनती है हिन्दी |

कोस-कोस यहाँ बदले पानी, पाँच कोस पे बानी
फूलों में सुदृढ़ धागा-सी, हृदयमाल रचती है हिन्दी |