एक कोरा कागज़
कोरा ही रहे
कवियों को
यह बर्दाश्त नहीं होता
बहुत सारी कविताएं
मौन के साथ
पढ़े जाने के लिए होती हैं
कुछ को पढ़ो तो
श्वास थामनी पड़ जाती है
कभी-कभी तो
ऐसा भी हुआ
कवि कविता लिखकर
फिर वापस ही नहीं लौटा
कागज़ पर
एक आवाज़ भर ठहर गई
कविता तो बोलती है
कागज़ पर
जब लोग ध्यान से
किसी आवाज़ की
प्रतीक्षा करते हैं ।