मुक्त कंठ स्पंदन भर दो संसार ।
इंद्र धनुष सी रचो तूलिका प्यार ।
जाग उठेगी अमिट हृदय की प्यास,
तिमिर सिंधु खद्योत बने आधार ।
शंख नाद, वीणा, बंशी कर- ताल
मंदिर - मंदिर दीप जले हर द्वार ।
मनु वंशज तुम क्यों होते दिग्भ्रांत,
तोडो़ मूर्छा जोश भरो हुंकार ।
अस्त्र शस्त्र हो या हो अमल विवेक,
युवा देश के बैठे क्यों सुकुमार ।
चिर परिचित अपना गौरव इतिहास,
रुके प्रलय अब हृदय भरो अंगार ।
करो ध्वनित तुम धरती से आकाश,
रसास्वाद यह निर्मल प्रेम विचार ।