सागर की साँवरी देह पर चाँदनी
जैसे तुम्हारे साँवरे गात पर आभा
करुणा की, प्रेम की, अपनी सारी बेचैनी को स्थिर करती साधना की
कितना अलग दिखता है समुद्र तुम्हें याद करते हुए
कैसी समझ आती हो तुम
समुद्र को याद करते हुए
सागर की साँवरी देह पर चाँदनी
जैसे तुम्हारे साँवरे गात पर आभा
करुणा की, प्रेम की, अपनी सारी बेचैनी को स्थिर करती साधना की
कितना अलग दिखता है समुद्र तुम्हें याद करते हुए
कैसी समझ आती हो तुम
समुद्र को याद करते हुए